Sunday, December 26, 2010

सरकोजी की यात्रा से भारत-फ्रांस में बढ़ी समझदारी

फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी चार दिवसीय यात्रा पर चार दिसम्बर को भारत आए। दशकों पुराने भारत-फ्रांस संबंधों में यह यात्रा बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव मानी जा रही है। सरकोजी भारत यात्रा पर दूसरी बार आए। इससे पहले वह 2008 में गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि थे। सरकोजी और उनकी पत्नी कार्ला ब्रूनी ने अपनी यात्रा बंगलुरू से शुरु की और मुंबई पर खत्म। भारत के इन दोनों शहरों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्व है। मुंबई आर्थिक राजधानी है और बंगलुरू को तकनीकी राजधानी कहा जाने लगा है। इस यात्रा के विभिन्न पड़ावों पर फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने भारत के साथ सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की पहल की। उनके साथ फ्रांसीसी मंत्रिमंडल के 6 मंत्री और विभिन्न कंपनियों के 70 मुख्य कार्यकारी अधिकारी शामिल थे।
यात्रा का उद्देश्य-
भारत दौरे से फ्रांस यहां के व्यापार में अपनी और पकड़ बनाना चाहता था। इस तरह के विशाल शिष्टमंडल को साथ लाने का उद्देश्य आर्थिक मसलों पर आपसी विश्वास को बढ़ावा देना है। फ्रांस व भारत की वार्ताओं का मुख्य केंद्र परमाणु ऊर्जा एवं रक्षा समझौता रहा। ज्ञात हो कि भारत ने पहला परमाणु करार फ्रांस के साथ ही किया था। यह अमेररीका से हुए परमाणु करार से अधिक दूरगामी था और इसमें अमेरिकी करार की तरह शर्तें भी नहीं थोपी गयी थीं। निकोलस सरकोजी की इस यात्रा में उसी करार को आगे बढ़ाने की मंशा थी, जिसे काफी हद तक पूरा किया गया। फ्रांस से भारत के रिश्ते सदा से अच्छे रहे हैं। उस दौर में भी, जब अमेरिका समेत सारा पश्चिम हमारे खिलाफ था।
बढ़ा सहयोग-
भारत-फ्रांस के बीच परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए कुल सात समझौते हुए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है महाराष्ट्र के जैतपुर में परमाणु बिजली संयंत्र की फ्रांसीसी सहयोग से स्थापना। फ्रांसीसी कंपनी अरेवा और भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड के बीच 25 अरब डालर का बुनियादी समझौता हुआ। यह करार सबसे महत्वपूर्ण इसलिए माना जा रहा है कि इससे भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में थमे हुए पहिए फिर रफ्तार पकड़ते नजर आएंगे। अपनी बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए पारंपरिक जैविक ईंधन की जगह नाभिकीय ऊर्जा का इस्तेमाल करने की भारत की कोशिश इस समझौते से पूरी होगी। इन महत्वपूर्ण समझौतों के अतिरिक्त निकोलस सरकोजी ने भारत को आधुनिक रक्षा तकनीक मुहैया कराने की इच्छा जताई। रूस का विमान मिग और फ्रांस का मिराज भारतीय सेना को सशक्त बनाते रहे हैं। सरकोजी ने भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दिलाने की मंशा जाहिर की। इससे भारत सर्वाधिक उत्साहित हुआ है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मुलाकात में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पनप रहे आतंकवाद पर भी चिंता जाहिर की। इनके अलावा दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, शैक्षणिक सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा हुई, जिसका लाभ इस देश के प्रतिभाशाली छात्रों को मिलेगा।
परमाणु सहयोग को महत्व-
फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने साझा संवाददाता सम्मेलन में भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलाने में फ्रांसीसी सहयोग के मुद्दे को सर्वाधिक महत्व दिया, लेकिन व्यवहारतः इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा भारत और फ्रांस के बीच दो परमाणु रिएक्टर लगाने का सौदा ही था, जो 9.3 अरब डॉलर का है। परमाणु तकनीक में फ्रांस आगे है और जब सोवियत संघ और अमेरिका या वारसा संधि और नाटो देशों के बीच तनातनी का दौर था, तब फ्रांस शांतिपूर्ण कामों के लिए परमाणु तकनीक बेचने वाला सबसे बड़ा देश बन गया था। इधर भी अमेरिका से परमाणु करार होने और परमाणु दायित्व का मसला सुलझ जाने के बाद से ऐसे सौदों की उम्मीद की जा रही थी। भारत कुल 20 परमाणु संयंत्र लगाकर अपनी ऊर्जा की जरूरतों में आ रही कमी को पूरा करना चाहता है और फ्रांस से जो समझौता हुआ है, यह उसी का हिस्सा है। परमाणु बिजली को हमारी ऊर्जा की जरूरतों का विकल्प माना जा रहा है।

भारत-रूस में अहम सैनिक परमाणु सहयोग समझौता

रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेमेव ने अपनी आधिकारिक भारत यात्रा 21 दिसम्बर को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात के साथ शुरू की। इस दौरान भारत और रूस के बीच 11 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें असैनिक परमाणु सहयोग पर अहम समझौता शामिल है। रूसी राष्ट्रपति रूस के आर्थोडॉक्स चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु पेट्रिआर्च एलेक्सी द्वितीय के निधन के कारण तीन दिन की यात्रा बीच में छोड़कर स्वदेश लौट गए। यात्रा की मुख्य बात यह रही कि मेदवेदेव ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार की सूरत में भारत को स्थाई सदस्य के रूप में मौका दिए जाने का समर्थन किया। उन्होंने कहा, अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार होता है, तो भारत स्थाई सदस्य बनने का हकदार है। दोनों देशों के बीच ये सहमति बनी है कि 2015 तक द्विपक्षीय व्यापार को 20 अरब डॉलर किया जाएगा।
ये हुए समझौते
परमाणु क्षेत्र में सहयोग के अलावा दोनों देशों के बीच तेल और गैस क्षेत्र, अंतरिक्ष, विज्ञान और तकनीक तथा फार्मा क्षेत्र में समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। अवैध अप्रवासियों को रोकने और हाइड्रोकार्बन सेक्टर में भी भारत और रूस के बीच सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर हुए। इसके अलावा 2015 तक द्विपक्षीय व्यापार को 20 अरब डॉलर तक बढ़ाने, इनमें चुनाव के क्षेत्र में मदद, आपातकाल से ल़डने में सहायता, द्विपक्षीय विज्ञान एवं तकनीक संस्थान खोलने, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सूचना आदान-प्रदान करने पर समझौते हुए हैं।
दोनों देशों के नेताओं के वक्तव्य
दिल्ली में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति ने कहा, भारत के साथ अफगानिस्तान मुद्दे पर भी चर्चा हुई है। कोई भी आतंकवादियों को अपने यहां आम नागरिक की तरह जगह नहीं दे सकता है और उन्हें सौपना ही चाहिए। मैं जानता हूं कि प्रत्यर्पण की प्रक्रिया जटिल होती है, इसके लिए कानूनी ढांचे की जरूरत है। ऎसा ढांचा तैयार होने के बाद आतंकवादियों को सौंप दिया जाना चाहिए, ताकि उन्हें सजा मिल सके। मेदवेदेव ने कहा कि रूस, पाकिस्तान से मांग करता है कि वह संयुक्त राज्य द्वारा आतंकी संगठनों पर लगाए गए पाबंदी को अमलीजामा पहनाए। इस मौके पर मनमोहन सिंह ने कहा कि रूस भारत का ऎसा दोस्त है, जिसने हर अच्छे-बुरे समय में भारत का साथ दिया है। उन्होंने कहा कि भारत के बाकी देशों से बढ़ते संबंधों के बावजूद रूस के साथ रिश्ता आगे बढ़ता रहेगा। भारतीय प्रधानमंत्री ने रूस-अमेरिका के बीच हुए निरस्त्रीकरण का स्वागत किया। दोनों देशों ने ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु संवर्धन कार्यक्रम का समर्थन किया।
यात्रा के निहितार्थ-
शीत युद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के करीबी रिश्ते रहे हैं और रूसी राष्ट्रपति चाहते हैं कि उनकी कंपनियां अन्य विदेशी कंपनियों से परमाणु और रक्षा सौदों में पिछ़ड न जाएं। भारत और रूस के बीच वर्ष 2009 में व्यापारिक लेन-देन साढ़े सात अरब डालर तक पहुंच गया था। वर्ष 2010 के पहले नौ महीनों में इस राशि में बीस प्रतिशत वृद्धि हुई और आशा की जा रही है वर्ष 2015 तक इसका स्तर बीस अरब डालर तक पहुंच जाएगा। दोनों देशों के बीच सबसे बड़ी संयुक्त परियोजना दक्षिणी भारत में एक परमाणु बिजलीघर का निर्माण और शाखालीन फील्ड से तेल और गैस का निकालना है जिसमें भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी शामिल है। रूस में बने हथियारों के लिए भारत पुराना बाज़ार रहा है लेकिन अब दोनों देशों के संबंध बदल रहे हैं. भारत अब सिर्फ़ रूस से हथियार नहीं खरीदना चाहता बल्कि उनकी तकनीक भी सीखना चाहता है। इसके अतिरिक्त एशिया में चीन के बढ़ते कद के मद्देनजर भी भारत अन्य शक्तिशाली देशों का समर्थन चाहता है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के साथ ही फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी और अब रूसी राष्ट्रपति के आगमन का लाभ उठाने की मंशा के पीछे यही निहितार्थ रहा है। इसके साथ ही विश्व में चीन के पश्चात भारत के आर्थिक विकास की दर सबसे ऊंची है और इस दर ने उसे अमेरिका और यूरोप की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए आकर्षण का केन्द्र बना दिया है।

Thursday, December 2, 2010

ओबामा की भारत यात्रा

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने दस दिवसीय एशियाई दौरे की शुरुआत 6 नवम्बर को भारत दौरे से की। यात्रा का पहला दिन उन्होंने मुंबई में व्यतीत किया, जहां भारतीय व्यापार और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात की एवं अमेरिकी और भारतीय कंपनियों के बीच 10 अरब डॉलर के समझौतों की घोषणा की। 7 नवम्बर को दिल्ली पहुंचकर वह हुंमायूं का मक़बरा देखने गए और राजघाट में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की। यहां राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से उऩकी मुलाकात हुई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनके सम्मान में भोज दिया। दिल्ली में ओबामा ने प्रतिबंधित तकनीकों के निर्यात से भी पाबंदी हटाने की बात कही। इसके तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को परमाणु ईंधन के दोहरे उपयोग की तकनीक हासिल करने की सुविधा मिल सकेगी। भारतीय संसद को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का समर्थन किया। उन्होंने कहा, अमेरिका चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार होने चाहिए और भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होना चाहिए। भारत और अमेरिका ने दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने और मज़बूत करने की घोषणा भी की। अमेरिकी राष्ट्रपित की यात्रा पर भारत और अमेरिका ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि 21वीं सदी में दुनिया भर में शांति क़ायम रखने के लिए एक सक्षम और प्रभावी संयुक्त राष्ट्र संघ की ज़रुरत है। समझौतों से अमेरिका में 50 हज़ार से अधिक रोज़गार अवसरों का निर्माण होगा। दोनों नेताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जो देश 21वीं सदी में नेतृत्व करना चाहते हैं, उनके लिए जरूरी है कि वे देश संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य यानि शांति और सुरक्षा, वैश्विक सहयोग और मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए ज़िम्मेदारी स्वीकार करें। नेता द्वय ने पूर्वी और मध्य एशिया तथा मध्य पूर्व में भारत और अमेरिका के बीच सामरिक सहयोग को और बढ़ाने पर बल दिया। अफ़ग़ानिस्तान में भारत की भूमिका की सराहना करते हुए ओबामा ने कहा कि भारत के सहयोग से अफ़ग़ानिस्तान को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी। भारत और अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान में कृषि और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में संयुक्त परियोजना शुरु करने का फैसला किया है।

16वें एशियाई खेलों का समापन

चीन में ग्वांग्झू में 27 नवम्बर को 16वें एशियाई खेलों का समारोहपूर्वक समापन हुआ। ये अब तक के सबसे बड़े एशियाई खेल थे जहाँ 42 खेलों में 476 स्वर्ण पदकों का फ़ैसला हुआ। 17वें एशियाई खेल दक्षिण कोरिया के इंचियोन में शहर आयोजित किए जाएंगे। इन खेलों में चीन ने 199 स्वर्ण, 119 रजत और 98 काँस्य पदकों सहित कुल 416 पदक जीते। दूसरे स्थान पर रहे दक्षिण कोरिया के 76 स्वर्ण, 65 रजत और 91 कांस्य पदकों सहित कुल 232 पदक थे। जापान 48 स्वर्ण पदकों के साथ तीसरे स्थान पर रहा। भारत को 14 स्वर्ण, 17 रजत, 33 कांस्य सहित कुल 66 पदक प्राप्त हुए। वह छठवें स्थान पर रहा।
चीन ने जीते सर्वाधिक पदक
इन खेलों में 45 एशियाई देशों और क्षेत्रों के लगभग 10 हज़ार एथलीट्स ने हिस्सा लिया। पदक तालिका में 36 देशों और क्षेत्रों को जगह मिली जबकि स्वर्ण कुल मिलाकर 28 देशों और क्षेत्रों ने जीते। इनमें 1400 ड्रग टेस्ट हुए जिनमें से दो लोगों के नमूने पॉज़िटिव पाए गए। एथलेटिक्स में चीन का बोलबाला रहा जहां उसने 13 स्वर्ण सहित कुल 36 पदक जीते। दूसरे नंबर पर पांच स्वर्ण के साथ भारत रहा। बास्केटबॉल में भी चीन ने पुरुष और महिला दोनों वर्गों में स्वर्ण अपने पास बरक़रार रखा। मुक्केबाज़ी में चीन ने पांच स्वर्ण सहित कुल 10 पदक जीते जबकि भारत के पास दो स्वर्ण सहित कुल नौ पदक आए। फ़ुटबॉल में जापान ने महिलाओं और पुरुषों दोनों ही वर्गों में स्वर्ण पदक पर क़ब्ज़ा किया। हॉकी में चीन ने महिलाओं का स्वर्ण जीता। उधर कुश्ती में ईरान सबसे आगे रहा, जिसने सात स्वर्ण पदक जीते, जापान को तीन स्वर्ण मिले।
भारत का प्रदर्शन-राउंडअप
भारत को सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक एथलेटिक्स में मिले। इसके साथ ही पिछले खेलों के मुक़ाबले मुक्केबाज़ी में भारत के प्रदर्शन में सबसे ज़बर्दस्त सुधार हुआ। टेनिस में भी भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया और दो स्वर्ण, एक रजत और दो काँस्य पदक जीते। एथलेटिक्स के अलावा अलग अलग वर्ग के दौड़ में भी भारत ने अपना परचम लहराया। दोहा एशियाई खेलों निशानेबाज़ी (पिस्टल के मुक़ाबलों) में भारत को तीन स्वर्ण मिले थे जबकि यहां मात्र एक स्वर्ण मिला। पिछले एशियाई खेलों में सिर्फ़ दो काँस्य पदक लाने वाले मुक्केबाज़ों ने इस बार भारत को कुल नौ पदक दिलाए और उसमें भी दो स्वर्ण थे। रोइंग ने पाँच पदक दिलाए जिसमें बजरंग लाल टाखर का पुरुषों के एकल स्कल्स में स्वर्ण भी शामिल था। पंकज आडवाणी ने बिलियर्ड्स में पहला स्वर्ण भारत को दिलाया। शतरंज में देश को मात्र दो काँस्य पदकों से ही संतोष करना पड़ा। टेनिस में सोमदेव देवबर्मन ने एकल और युगल में स्वर्ण जीता। तीरंदाज़ी में भारतीय पुरुष और महिला टीमों को काँस्य पदक मिले। आशीष कुमार ने भारत को पहली बार एशियाई खेलों में काँस्य दिलाया। इसी तरह तैराकी में भारत को 24 साल बाद कोई पदक मिला। भारतीय हॉकी टीमें स्वर्ण जीतकर सीधे लंदन ओलंपिक के लिए क्वॉलिफ़ाई करने के इरादे से आई थीं मगर महिला टीम तो चौथे स्थान पर रही जबकि पुरुष टीम सेमीफ़ाइनल में मलेशिया से हार गई और बाद में काँस्य जीत सकी। कबड्डी में महिलाओं के वर्ग में स्वर्ण भारत को ही मिला। राष्ट्रमंडल खेलों में अच्छे प्रदर्शन के बाद कुश्ती से भारत को काफ़ी उम्मीदें थीं मगर अलका तोमर और सुशील कुमार जैसे प्रमुख पहलवानों की ग़ैर-मौजूदगी में भारत सिर्फ़ तीन काँस्य पदक ही जीत सका।

पदक तालिका
स्थान देश स्वर्ण रजत कांस्य कुल
1 चीन 199 119 98 416
2 दक्षिण कोरिया76 65 91 232
3 जापान 48 74 94 216
4 ईरान 20 14 25 59
5 कजाकिस्तान18 23 38 79
6 भारत 14 17 33 64
7 चीनी ताइपे 13 16 38 67
8 उज्बेकिस्तान11 22 23 56
9 थाईलैण्ड 11 9 32 52
10 मलेशिया 9 18 13 40
11 हांगकांग 8 15 17 40
12 उत्तर कोरिया6 10 20 36
13 सऊदी अरब 5 3 5 13
14 बहरीन 5 0 4 9
15 इंडोनेशिया4 9 13 26
16 सिंगापुर 4 7 6 17
17 कुवैत 4 6 1 11
18 कतर 4 5 7 16
19 फिलीपींस3 4 9 16
20 पाकिस्तान 3 2 3 8

नवम्बर-2010 में खास खबरें

एक नवम्बर- चीन में विश्व की सबसे बड़ी जनगणना शुरू। डिल्मा चुनी गईं ब्राजील की राष्ट्रपति।
दो नवम्बर- जापान ने की रूस से राजदूत वापस बुलाने की घोषणा। लॉर्ड स्वराज पॉल ने दिया हाउस आफ लार्ड्स के डिप्टी स्पीकर पद से त्यागपत्र।
तीन नवम्बर- निकी हैले चुनी गईं अमेरिकी प्रांत दक्षिण कैरोलिना की गवर्नर। रूस के पूर्व प्रधानमंत्री विक्टर चेरनोमिरदिन का निधन।
चार नवम्बर- स्वदेशी विमान इंजन कावेरी का सफल परीक्षण। कोल इंडिया बनी भारत की पांचवीं मूल्यवान कंपनी।
पांच नवम्बर- म्यांमार में विशाल मार्च के बाद आंग सान सू की रिहाई की तैयारी में जुटी सरकार।
छह नवम्बर- अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत यात्रा पर मुंबई पहुंचे। जकाया किकविते तंजानिया के दोबारा राष्ट्रपति। भारत संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण बजट संबंध समिति में चुना गया।
सात नवम्बर- आस्ट्रेलिया ने श्रीलंका के विरुद्ध एकदिवसीय क्रिकेट सीरीज जीती। रोजर फेडरर स्वस इंडोर्स टेनिस विजेता।
आठ नवम्बर- अमेरिका और आस्ट्रेलिया में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर समझौता। दक्षिण अफ्रीका ने पाकिस्तान को हराकर जीती वन-डे सीरीज।
नौ नवम्बर- उड़ीसा का नाम बदलकर ओडिशा करने को लोकसभा की मंजूरी। अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा नई दिल्ली से इंडोनेशिया रवाना।
10 नवम्बर- पृथ्वीराज चह्वाण बने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री। जी-20 सम्मेलन में भाग लेने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सियोल रवाना।
11 नवम्बर- सचिन तेंदुलकर विश्वकप 2011 के ब्रांड अम्बेस्डर नियुक्त। पृथ्वीराज चह्वाण ने ली महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ।
12 नवम्बर- चीन में 16वें एशियाई खेलों का शुभारंभ। म्यांमार में आन सांग सू की को रिहा करने के आदेश।
13 नवम्बर- निशानेबाज गगन नारंग ने 16वें एशियाई खेलों में भारत का पहला पदक जीता। संयुक्त राष्ट्र की स्थाई सदस्यता पर भारत को जापान का समर्थन।
14 नवम्बर- केन्द्रीय संचार मंत्री के पद से ए. राजा का त्यागपत्र। फिलन बने फ्रांस के प्रधानमंत्री।
15 नवम्बर- नेपाल में प्रधानमंत्री पद को 17 वें दौर का चुनाव टला। जमीयत उलेमा ए हिंद ने अयोध्या मामले में की सुप्रीम कोर्ट में अपील।
16 नवम्बर- मोबाइल स्पेक्ट्रम आवंटन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट संसद में पेश। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मांगा प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण।
17 नवम्बर- एशियाई खेलों की वुशु स्पर्धा में भारत को पहली बार रजत पदक। चीन ने पेश किया दुनिया का सबसे तेज सुपर कम्प्यूटर तिहान्हे 1-ए।
18 नवम्बर- एशियाई खेलों में नौकायन में भारत को दो रजत पदक। तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को मदर टेरेसा मेमोरियल इंटरनेशनल अवार्ड।
19 नवम्बर- गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने की राजीव गांधी नवयुवती सशक्तिकरण योजना (सबला) की शुरुआत। ब्राजील के पूर्व प्रधानमंत्री लुइस इनासियो लूला को इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार की घोषणा।
20 नवम्बर- नाटो ने किया मिसाइल सुरक्षा प्रणाली लगाने का निर्णय। बिहार विधानसभा चुनावों में मतदान का अंतिम चरण सम्पन्न।
21 नवम्बर- भारत ने जीते एशियाई खेलों में तीन स्वर्ण पदक। तंबाकू प्रयोग पर नियंत्रण के लिए 172 देशों में बनी सहमति।
22 नवम्बर- केन्द्रीय सर्तकता आयुक्त पीजे थॉमस की नियुक्ति पर उठाया प्रश्न। मुंबई में एक और हवाई अड्डे को स्वीकृति।
23 नवम्बर- सोमदेव देवबर्मन ने जीता एशियाई टेनिस में एकल स्पर्धा का स्वर्ण। ऋण संकट से त्रस्त आयरलैंड को यूरोपीय संघ और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) से मिला बेलआउट पैकेज।
24 नवम्बर- बिहार विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ गठबंधन को स्पष्ट बहुमत। मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी सेवा की हरियाणा टेलीकॉम सक्रिल से शुरुआत।
25 नवम्बर- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने आईपीएल से कोच्चि की टीम को किया बाहर। मिसाइल अग्नि-1 का परीक्षण सफल।
26 नवम्बर- सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यशैली पर की सख्त टिप्पणियां। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल पहुंचीं सीरिया की राजधानी दमिश्क।
27 नवम्बर- ग्वांग्झू एशियाई खेलों का समापन। बास्केटबॉल खेलते वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा हुए चोटिल।
28 नवम्बर- भारत ने एक दिवसीय क्रिकेट मैच में न्यूजीलैण्ड को हराया। भारत-सीरिया ने बनाई साझा व्यापार परिषद।
29 नवम्बर- वेबसाइट विकीलीक्स ने लीक किए अमेरिकी गोपनीय दस्तावेज। राष्ट्र विरोधी टिप्पणी पर हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी और लेखिका अरुंधति राय पर दिल्ली में मुकदमा दर्ज।
30 नवम्बर- अमर प्रताप सिंह बने केंद्रीय जांच ब्यूरो [सीबीआई] के नए निदेशक। बिहीर में नवगठित 15वीं विधानसभा का पहला सत्र आरंभ।

Saturday, November 20, 2010

जानिये ये हैं सुपर कम्प्यूटर...


तेज गति से दौड़ रही आज की इस दुनिया में सब-कुछ कम्प्यूटर पर केंद्रित है। इसीलिये कम्प्यूटरों की गति भी बढ़ रही है। देशों में प्रतिस्पर्धा है कि कौन कितनी तेज गति का कम्प्यूटर बनाता है। इसी होड़ में विजय पाते हुए चीन ने तिहान्हे-1 ए सुपर कम्प्यूटर का अविष्कार किया है। तिहान्हे का हिंदी में शाब्दिक अर्थ है आकाशगंगा। 18 नवम्बर को बीजिंग में इसका अनावरण किया गया। इन कंप्यूटरों की रैंकिंग निर्धारित करने वाली टेन्नसी स्थित प्रयोगशाला के वैज्ञानिक जैक जोंगरा के मुताबिक, यह कम्प्यूटर शीर्ष स्थान का हकदार है। यह वर्तमान में सर्वाधिक तेज माने जाने वाले अमेरिकी सुपर कम्प्यूटर जगुआर से 1.4 गुना अधिक है। इस श्रेणी के कम्प्यूटरों के मामले में चीन के साथ ही अमेरिका, जापान, फ्रांस और जर्मनी सबसे आगे हैं। शीर्ष-10 की सूची में अमेरिका के पांच, चीन के दो और फ्रांस, जापान और जर्मनी का एक-एक सुपर कम्प्यूटर है। भारत का सुपर कम्प्यूटर एका 47वें स्थान पर है। हमारे तीन और सुपर कम्प्यूटर शीर्ष-500 की सूची में 136, 297 और 489 वें पायदान पर हैं।
चीन ने सबसे तेज सुपर कम्प्यूटर
चीन ने अमेरिका की भांति दुनिया का सबसे तेज कम्प्यूटर बना लिया है। 14 नवम्बर को जारी एक सूची में दुनिया के 500 सुपर कम्प्यूटरों में चीन के तिहान्हे-1ए को शीर्ष स्थान दिया गया जो प्रति सेकेंड 2.67 क्वाड्रिलियंस गणनाएं कर सकता है। यह कम्प्यूटर संसार के तेज सुपर कंप्यूटर के लिए एक सर्व में सबसे तेज बताया जा रहा है। चीन से पहले अमेरिका ने सुपर कम्प्यूटर जगुआर ने बनाया था। सुपर कम्प्यूटर की रैंकिंग को निर्धारित करने वाले टेन्नेसी स्थित प्रयोगशाला के कम्प्यूटर वैज्ञानिक जैक डोंगरा ने कहा कि चीन द्वारा बनाया गया यह कम्प्यूटर शीर्ष स्थान पर रहने का हकदार है। चीन के उत्तरी तटीय शहर तियानजिन स्थित नेशनल सुपर कम्प्यूटर सेंटर में तियान्हे 1 ने प्रति सेकंड 2507 ट्रिलियन गणना करके यह मुकाम हासिल किया। इस कम्प्यूटर को नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ डिफेंस टेक्नॉलॉजी ने विकसित किया है जिसने इसे स्वदेश निर्मित फितेंग-1000 सीपीयू से सुसज्जित किया है।
क्या होता है सुपर कम्प्यूटर
यह ऐसा कम्प्यूटर है जो सामान्य कम्प्यूटरों की तुलना में काफी तेज गति से चलता है। पैरेलल प्रोसेसिंग के सिद्धांत पर काम करने वाले सुपर कम्प्यूटर 32 या 64 पैरेलल सर्किट्स में कार्यरत कई कम्प्यूटरों को जोड़कर बनाए जाते हैं। इन्हें इनकी काम करने की गति से परिभाषित किया जाता है। वर्तमान में वे कम्प्यूटर जिनकी कार्य क्षमता 500 मेगा फ्लाप्स और मेमोरी कम से कम 52 मेगा बाइट हो, सुपर कम्प्यूटर कहलाते हैं। पैरेलल प्रोसेसिंग तकनीक में जोड़े गए सारे माइक्रो प्रोसेसर किसी भी समस्या को भागों में विभाजित कर उस पर एकसाथ कार्य करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया से गणनाओं की क्षमता पांच अरब प्रति सेकेंड सुनिश्चित हो जाती है। शुरुआती सुपर कम्प्यूटरों में वेक्टर प्रोसेसिंग का प्रयोग होता था जो अपेक्षाकृत काफी महंगी थी। वर्तमान के सुपर कम्प्यूटरों में जहां गीगा फ्लाप्स, टेरा फ्लाप्स और पेटा फ्लाप्स की गति पाई जाती है पर पुराने दौर में यह गति मेगा फ्लाप्स ही थी। इसके साथ ही सुपर कम्प्यूटरों में उच्च भण्डारण घनत्व वाली मैग्नेटिक बबल मेमोरी या आवेशित कपल्ड युक्तियों वाली मेमोरी का प्रयोग होता है, जिनकी मदद से छोटे से स्थान में सूचनाओं का बड़ा भण्डार एकत्र किया जा सकता है।
सुपर कम्प्यूटर का इतिहास
पहली बार सुपर कम्प्यूटर शब्द का प्रयोग 1929 में आईबीएम के बनाए टैबुलेटर्स के लिए हुआ था। उस समय यह आधुनिक तकनीक का प्रतिनिधित्व करते थे। अमेरिका के कंट्रोल डाटा कारपोरेशन (सीडीसी) में कार्यरत इलेक्ट्रिकल इंजीनियर सीमौर क्रे ने पहला सुपर कम्प्यूटर डिजाइन किया था। साठ के दशक से विकसित होना शुरू हुआ यह सुपर कम्प्यूटर सत्तर के दशक में प्रस्तुत हो सका। अस्सी के दशक तक इस क्षेत्र में सीडीसी का वर्चस्व रहा हालांकि सीमौर 1985-90 तक सुपर कम्प्यूटर मार्केट में छाए रहे। सीडीसी के बनाए सुपर कम्प्यूटर उस समय के सामान्य कम्प्यूटर की तुलना में महज दस गुना तेज गणना करते थे। यह क्षमता उनमें लगे तेज स्केलर प्रोसेसर्स की वजह से थी। अस्सी के दशक में ही सुपर कम्प्यूटरों में वेक्टर प्रोसेसर लगाए जाने लगे। नब्बे के दशक में चार से 16 प्रोसेसर्स समानांतर एक साथ प्रयोग किए जाने लगे। आज समानांतर डिजाइन स्टॉक में उपलब्ध सर्वर श्रेणी के माइक्रो प्रोसेसर्स पर आधारित हो गई है।
इसके उपयोग
सुपर कम्प्यूटर का सबसे अहम कार्य वैज्ञानिक कम्प्यूटिंग होता है। अत्यंत जटिल कार्यों में गणना के लिए भी इसका उपयोग हो रहा है, जैसे जलवायु शोध, क्वांटम भौतिकी, मौसम पूर्वानुमान, पॉलिमर रिसर्च, मॉलिक्यूलर मॉडेलिंग और फिजिकल सिमुलेशंस। क्वांटम मेकेनिक्स में विभिन्न आंकड़ों का विश्लेषण यह आसानी से कर देते हैं और परमाण्विक स्तर पर किसी पदार्थ का अध्ययन भी संभव है। हालांकि इसका सर्वाधिक प्रयोग मौसम पूर्वानुमान के लिए हो रहा है और दुनिया के सबसे ज्यादा सुपर कम्प्यूटर मौसम का पूर्वानुमान लगाने में ही प्रयुक्त हो रहे हैं। वैश्विक जलवायु मापने में भी यह इस्तेमाल हो रहे हैं। अंतरिक्ष कार्यक्रम भी सुपर कम्प्यूटरों पर ही आश्रित हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (नासा) के पास शक्तिशाली सुपर कम्प्यूटर है जिसका प्रयोग अंतरिक्ष मिशनों को सटीकता से पूरा करने में हो रहा है।
कहां है भारत
सुपर कम्प्यूटर के क्षेत्र में भारत को अभी बहुत-कुछ करना बाकी है। भारत के पास पांच सुपर कम्प्यूटर हैं जो सक्रियता से काम कर रहे हैं। ये कम्प्यूटर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) कानपुर, सेंटर फॉर डेवलपमेंट आफ एडवांस कम्प्यूटिंग (सीडैक) और निजी कम्पनी ह्यूलेट पैकर्ड (एचपी) के पास हैं। एचपी के सहयोग से तीन करोड़ डॉलर की लागत से तैयार टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के एका सुपर कम्प्यूटर वर्ष 2008 में जब स्थापित किया गया था, तब उसे गति के मामले में उसे विश्व में नौवां स्थान प्राप्त हुआ था। एका की सबसे ज्यादा गति 0.172 पेटा फ्लॉप्स है। टीसीएस अब एका-प्लस बनाने में जुटा है। एका के बाद भारत ने अन्नपूर्णा सुपर कम्प्यूटर विकसित किया, जिसे चेन्नई के इंस्टीट्यूट आफ मैथमेटिकल साइंस ने बनाया था। इसकी पीक कम्प्यूटेशन स्पीड थी 12 टेराफ्लॉप। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के बनाए पेस का मुख्य उपयोग मिसाइल और लड़ाकू विमानों की डिजाइनिंग में किया जा रहा है। भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान ने अनुपम नामक सुपर कम्प्यूटर विकसित किया है जबकि सीडैक के ऐसे कम्प्यूटर को परम नाम दिया गया था। 1998 में विकसित परम की गति 100 गीगा फ्लॉप्स है और यह एक सेकेंड में एक खबर गणितीय गणना करने में सक्षम है। इसके साथ ही सीडैक ने 2003 में परम पदम विकसित किया, जिसके साथ ही भारत उन देशों की पंक्ति में खड़ा हो गया जिनके पास टेरा फ्लॉप्स गणना की क्षमता वाले सुपर कम्प्यूटर हैं। तब तक अमेरिका, चीन, जापान और इजराइल के पास ऐसे सुपर कम्प्यूटर थे। सीडैक ने ही भारत का पहला कम कीमत का परम अनंत सुपर कम्प्यूटर विकसित किया है।
शुगर क्यूब साइज की तैयारी
आईबीएम की कोशिश दुनिया के सबसे छोटे सुपर कम्प्यूटर का विकास करने की है। उसके वैज्ञानिकों का दावा है कि वह अगले 10 से 15 वर्ष में शुगर क्यूब साइज का कम्प्यूटर बना लेंगे। कोशिश इसके इस्तेमाल में ऊर्जा के बेहद कम उपयोग की भी होगी। इस तकनीक को अक्वास्टार नाम दिया गया है। इस तकनीक विकास वास्तव में सुपरकम्प्यूटरों का कद कम करने के लिए नहीं बल्कि ऊर्जा की खपत को कम करने के लिए किया जा रहा है। भविष्य में कौन सा सिस्टम कितनी कम ऊर्जा का दोहन करता है यह काफी मायने रखेगा। आईबीएम के डॉ. मिशेल और उनकी टीम ने अक्वास्टार का सफल परीक्षण किया है। इस सिस्टम के अंतर्गत एक बडॆ फ्रीज के रैक में प्रोसेसरों को एक के ऊपर एक रखा गया और उनके बीच बहते पानी ने उनकी गर्मी को सोख कर सिस्टम को चालू रखा। इससे करीब 50% बिजली की बचत हुई।

Saturday, November 13, 2010

क्या है ब्ल्यू कॉर्नर नोटिस?

ब्ल्यू कॉर्नर नोटिस का मकसद इंटरपोल के सदस्य देशों से संबंधित व्यक्ति, जिसके विरुद्ध यह नोटिस जारी किया गया है, से संबंधित व्यक्तिगत और उसकी गतिविधियां आदि अन्य जानकारियां जुटाना होता है। किसी व्यक्ति को ब्लू कॉर्नर नोटिस दिए का मतलब है कि उसकी यात्राओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाना। इसे सामान्य भाषा में तलाश नोटिस कहा जाता है, हालांकि जिस देश में वह रह रहा है, वहां उसे रेड कॉर्नर नोटिस की तरह गिरफ्तार नहीं किया जाता बल्कि सामान्य रूप में संबंधित देश को पूरी सूचना दे दी जाती है। लेकिन जरूरत पड़ने पर आरोपी को वापस लाने के लिए इस नोटिस के तहत प्रत्यर्पण की प्रक्रिया भी शुरू की जा सकती है। जबकि ब्ल्यू अलर्ट का मतलब है कि उस व्यक्ति विदेश यात्रा से पहले जांच-पड़ताल या पूछताछ की जा सकती है। उसे एयरपोर्ट पर उड़ान के दौरान गिरफ्तार भी किया जा सकता है। हाल ही में चर्चा में आए इंडियन प्रीमियर क्रिकेट लीग के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी पर फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट के उल्लंघन का आरोप है।
कौन जारी करता है यह नोटिस
इंटरपोल(Interpol) के स्तर से यह नोटिस जारी किया जाता है, जिसका पूरा नाम है International Criminal Police Organization। यह अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो विभिन्न देशों के पुलिस के बीच सहयोग करके अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों को पकड़ती है। इसका मुख्यालय फ्रांस के लियोन शहर में स्थित है। यह नोटिस इंटरपोल की अधिकृत भाषा में जारी किए जाते हैं।
कौन-कौन से होते हैं नोटिस
इंटरपोल सात तरह के नोटिस जारी करती है जिनमें छह तो उनके रंगों से पहचाने जाते हैं, यह हैं रेड, ब्ल्यू, ओरेंज, येलो, ग्रीन और ब्लैक जबकि सातवें का नाम है इंटरपोल-यूएन सिक्योरिटी काउंसिल स्पेशल नोटिस। सन 2009 में इंटरपोल ने 7290 नोटिस जारी किए थे। रेड कॉर्नर नोटिस अस्थाई आग्रह होता है जिसमें व्यक्ति को प्रत्यर्पण के लिए गिरफ्तार करने को कहा जाता है। ओरेंज नोटिस पुलिस और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को पार्सल बम आदि विभिन्न प्रकार के खतरों से आगाह करने के लिए जारी होता है। येलो नोटिस उन लोगों की तलाश करने का आग्रह है जो विशेष रूप से कम उम्र या अपनी पहचान बता पाने में अक्षम होते हैं। ग्रीन नोटिस उन अपराधियों के बारे में चेतावनी या जानकारी के रूप में होता है जिनके अन्य देशों में भी इसी प्रकार के अपराध करने की आशंका होती है। ब्लैक नोटिस अज्ञात शवों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से जारी होता है। इंटरपोल-संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद विशेष नोटिस आतंकवादी संगठन अल कायदा और तालिबान के संबंध में है। 2005 में सुरक्षा परिषद के विशेष आग्रह पर शुरू किए गए इस नोटिस का मकसद आतंकी खतरे के विरुद्ध समय पूर्व एकजुटता और तैयारियां हैं।

Thursday, November 11, 2010

राष्ट्रमंडल खेलों में भारतः 2010 के स्वर्ण पदक विजेता

2010 में भारत के स्वर्ण पदक
गगन नारंग-अभिनव बिंद्रा- (10 मीटर एयर राइफल पुरुष निशानेबाजी)
गगन नारंग-इमरान हसन खान- (50 मीटर एयर राइफल-3 पोजीशन निशानेबाजी पुरुष)
गगन नारंग- (10 मीटर एयर रायफल व्यक्तिगत पुरुष निशानेबाजी)
गगन नारंग- (50 मीटर रायफल व्यक्तिगत निशानेबाजी)
अनीशा सैय्यद-राही सर्नोबत- (25 मीटर पिस्टल महिला निशानेबाजी)
विजय कुमार-गुरुप्रीत सिंह- (25 मीटर रेपिड फायर पिस्टल युगल)
ओंकार सिंह-गुरुप्रीत सिंह- (10 मीटर एयर पिस्टल पुरुष निशानेबाजी)
ओंकार सिंह (10 मीटर एयर पिस्टल पुरुष एकल निशानेबाजी)
विजय कुमार (25 मीटर रेपिड फायर व्यक्तिगत निशानेबाजी)
विजय कुमार-हरप्रीत सिंह (25 मीटर सेंटर फायर पिस्टल निशानेबाजी)
हरप्रीत सिंह (25 मीटर सेंटर फायर पिस्टल व्यक्तिगत निशानेबाजी)
हिना सिद्धू-अन्नूराज सिंह (10 मीटर एयरपिस्टल महिला निशानेबाजी)
अनीशा सैय्यद- (25 मीटर पिस्टल महिला एकल निशानेबाजी)
ओंकार सिंह- (25 मीटर पिस्टल व्यक्तिगत निशानेबाजी)
राजेंद्र कुमार- (कुश्ती ग्रीको रोमन पुरुष 55 किलोग्राम)
रविंद्र सिंह- (कुश्ती ग्रीको रोमन पुरुष 60 किलोग्राम)
संजय कुमार- (कुश्ती ग्रीको रोमन पुरुष 74 किलोग्राम)
अनिल कुमार- (कुश्ती ग्रीको रोमन पुरुष 96 किलोग्राम)
गीता सिंह फोगट- (कुश्ती महिला 55 किग्रा फ्रीस्टाइल)
अलका तोमर- (कुश्ती महिला 59 किग्रा फ्रीस्टाइल)
अनीता तोमर- (कुश्ती महिला 67 किग्रा फ्रीस्टाइल)
योगेश्वर दत्त- (कुश्ती पुरुष 60 किग्रा फ्रीस्टाइल)
सुशील कुमार- (कुश्ती पुरुष 66 किग्रा फ्रीस्टाइल)
नर सिंह पंचम यादव- (कुश्ती पुरुष 74 किग्रा फ्रीस्टाइल)
यमनम रेनूबाला चानू (भारोत्तोलन महिला 58 किग्रा)
कतूलू रवि कुमार (भारोत्तोलन पुरुष 69 किग्रा)
सुरंजय सिंह- (मुक्केबाजी फ्लाईवेट पुरुष 52 किग्रा)
परमजीत समोटा - (मुक्केबाजी लाइट सुपर हेवीवेट पुरुष 52 किग्रा)
मनोज कुमार - (मुक्केबाजी लाइट वेल्टरवेट पुरुष 64 किग्रा)
सायना नेहवाल- (बैडमिण्टन महिला एकल)
अश्वनी पोनप्पा-ज्वाला गट्टा- (बैडमिण्टन महिला युगल)
दीपिका कुमारी-डोला बनर्जी-बोम्बैयाला देवी लैसरामः (तीरंदाजी महिला रिकर्व टीम)
दीपिका कुमारीः (तीरंदाजी रिकर्व महिला व्यक्तिगत)
राहुल बनर्जीः (तीरंदाजी रिकर्व व्यक्तिगत पुरुष)
सोमदेव देवबर्मनः (टेनिस, पुरुष एकल)
कृष्णा पूनियाः (एथलेटिक्स, महिला डिस्कस थ्रो)
मंजीत कौर, सिनी जोस, अश्वनी अन्कुजी, मंदीप कौरः (एथलेटिक्स, महिला 4 गुणा 400 मीटर रिले)
शुभाजीत साहा, अंचता शरत कमलः (टेबिल टेनिस, पुरुष युगल)

Friday, October 22, 2010

दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार- नोबेल

यह सच है कि पुरस्कार पाने की चाहत में कोई शोध या अविष्कार नहीं किया जाता, फिर भी मेहनत के लिए पुरस्कार पाना किसे पसंद नहीं होता। नोबेल अवार्ड दुनियाभर में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। यह एक ऐसा पुरस्कार है जिसे पाने का सपना हर वैज्ञानिक देखता है। नोबेल पुरस्कार शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में दिए जाते हैं। नोबेल पुरस्कार के तहत पदक, नोबेल प्रशस्ति पत्र और दस बिलियन क्रोनर (स्वीडन की मुद्रा) दिए जाते हैं। वर्ष 1901 में पहले नोबेल पुरस्कार विजेता को 150782 स्वीडिश क्रोन दिए गए। यह राशि परिवर्तित होती रहती है लेकिन 2001 से इस राशि में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। इस पुरस्कार की शुरुआत स्वीडिश रसायनशास्त्री और उद्योगपति अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में की गई और इसे उनकी पुण्यतिथि 10 दिसम्बर को प्रदान किया जाता है। नोबेल पुरस्कारों की स्थापना अल्फ्रेड के वसीयतनामे के अनुसार 1897 में हुई। उन्होंने ज्ञान के पांच क्षेत्रों में मानवता को लाभ पहुंचाने के लिए पुरस्कारों की स्थापना की इच्छा जताई थी। नोबेल फाउंडेशन की स्थापना 19 जून 1900 को हुई और पहली बार 1901 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार से जुड़े मामलों की देखरेख नोबेल फाउंडेशन के जिम्मे है। शांति का नोबेल व्यक्ति के अलावा किसी संस्था को भी प्रदान किया जा सकता है जबकि अन्य पुरस्कार सिर्फ व्यक्तियों को दिए जाते हैं। इन पुरस्कारों के चयन में नोबेल फाउंडेशन की कोई भूमिका नहीं होती।
कौन थे अल्फ्रेड नोबेल
रसायन शास्त्री अल्फ्रेड बर्नाड नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर 1833 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ था। वे आठ साल की आयु में परिवार के साथ रूस चले गए। उन्होंने कुल 355 अविष्कार किए, जिनमें डायनामाइट (1867) का अविष्कार भी शामिल है। 10 दिसम्बर 1896 को मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी विपुल संपत्ति का एक बड़ा भाग एक ट्रस्ट के लिए सुरक्षित रख दिया था। उनकी इच्छा थी कि इस राशि के ब्याज से हर वर्ष उन लोगों को सम्मानित किया जाए जिनका काम मानवजाति के लिए कल्याणकारी हो। स्वीडिश बैंक में जमा इस राशि के ब्याज से नोबेल फाउंडेशन यह पुरस्कार प्रदान करता है।
कौन करता है चुनाव
अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुसार चार संस्थान यह पुरस्कार प्रदान करते हैं। स्टॉकहोम की द रॉयल एकेडमी आफ साइंसेज भौतकी और अर्थशास्त्र का पुरस्कार देती है जबकि स्वीडिश एकेडमी और द कैरोलिंस्कार इंस्टीट्यूट को चिकित्सा का नोबेल प्रदान करने की जिम्मेदारी मिली है। ओस्लो में स्थित द नॉर्वियन नोबेल कमेटी शांति का नोबेल पुरस्कार देती है। नोबेल पुरस्कार के विजेता का चयन करने के लिए गहन शोध का सहारा लिया जाता है। चयन प्रक्रिया एक वर्ष पहले ही शुरू हो जाती है। पुरस्कार देने वाले संस्थान करीब छह हजार लोगों को योग्य व्यक्तियों के नाम प्रस्तावित करने के लिए आमंत्रित करते हैं। इन लोगों में नोबेल पुरस्कार प्राप्त लोग, विज्ञान जगत में महत्वपूर्ण काम करने वाले और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के सदस्य शामिल होते हैं। प्राप्त नामों की छंटनी के बाद दावेदारों की सूची बनाई जाती है। कोई व्यक्ति अपने नाम को खुद प्रस्तावित नहीं कर सकता, न ही किसी मृत व्यक्ति का इन पुरस्कारों के लिए नामांकन किया जा सकता है। हालांकि नामांकन के वक्त जीवित व्यक्ति को मरणोपरांत नोबेल पुरस्कार प्रदान किया जा सकता है। एक नोबेल समिति हर पुरस्कार के लिए प्राप्त नामों की हर वर्ष फरवरी से समीक्षा प्रारंभ करती है और विशेषज्ञों के सहयोग से पुरस्कार विजेताओं के नाम तय करती है। यह समिति सितम्बर के अंत तक अपनी सिफारिश पुरस्कार देने वाले संस्थानों को सौंप देती है, जिसे आम तौर पर मान भी लिया जाता है हालांकि इसे मानने की कोई बाध्यता नहीं है।
विवादित रह चुका है पुरस्कार
2010 में शांति के नोबेल विजेता ली ओ शाओ बी का चीन सरकार द्वारा विरोध नई बात नहीं है। इससे पूर्व भी यह पुरस्कार विवादित हो चुका है। 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पुरस्कृत किए जाने की दुनियाभर में आलोचना हुई थी। 1905 में अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट, 1973 में अमेरिकी रक्षा सचिव हेनरी किसिंजर, 1978 में कैम्प डेविड समझौते के लिए मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात को यह पुरस्कार आलोचना का विषय बना था। रूजवेल्ट पर आरोप था कि उन्होंने फिलीपींस में विद्रोह के विरुद्ध बल प्रयोग किया। वहीं किसिंजर पर कंबोडिया में बमबारी कराने और सादात के विरुद्ध इजरायल से युद्ध का आरोप समिति ने नजरअंदाज कर दिया। 2007 में अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर पर्यावरण संरक्षण पर यह पुरस्कार मिला जबकि उनका इस क्षेत्र से कोई वास्ता नहीं था। इसी तरह 1992 में अपनी आत्मकथा के लिए साहित्य का नोबेल पाने वाले राइगोबेटा मेंचु पर यह आरोप लगा कि आत्मकथा में तमाम असत्य बातें लिखी गई हैं।
भारतीय और भारतीय मूल के विजेता
रवींद्रनाथ ठाकुर (1861-1943) : वह साहित्य का नोबेल पाने वाले पहले भारतीय थे। उन्हें 1913 का यह पुरस्कार उनकी रचना गीतांजलि के लिए यह पुरस्कार दिया गया।
चंद्रशेखर वेंकटरमन (1888-1970) : वह भौतिकी का नोबेल पाने वाले पहले भारतीय थे। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिए वर्ष 1930 में उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार उनके ही नाम पर रामन प्रभाव के नाम से जाना जाता है।
हरगोबिंद खुराना (1922-1979): खुराना को चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया। ऐमिनो अम्लों की संरचना तथा आनुवांशिकीय गुणों का संबंध समझने के लिए उनकी खोज के लिए उन्हें अन्य दो अमेरिकी वैज्ञानिकों के साथ सन 1968 का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
मदर टेरेसा (1910-1997): मदर टेरेसा को 1979 में शांति का नोबेल अवार्ड दिया गया। हालांकि वह अल्बानिया में जन्मीं थीं लेकिन 1928 से उन्होंने कलकत्ता में सेवाकार्य आरंभ कर दिए। सेवा क्षेत्र भारत होने की वजह से उन्हें भारतीयों की श्रेणी में रखा जाता है।
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (1910-1995): उन्हें 1983 में भौतिक शास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया। उन्हें यह पुरस्कार सितारों की संरचना और क्रमिक विकास संबंधी भौतिकीय प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए मिला।
अमर्त्य सेन (1933): अर्थशास्त्र में नोबेल पाने वाले सेन पहले एशियाई हैं। उन्हें 1998 में लोक कल्याणकारी अर्थशास्त्र की अवधारणा के प्रतिपादन के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया गया।
वीएस नॉयपॉल (1932): विद्याधर सूरजप्रसाद नॉयपॉल को 2001 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया। उत्तर औपनिवेशिक लेखन के स्तंभ नॉयपॉल की चर्चित पुस्तकें हैं इन ए फ्री स्टेट और हाउस आफ मिस्टर विश्वास। वह त्रिनिदाद के नागरिक हैं।
आरके पचौरी (1940): तकनीकी तौर पर इंटर गवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी)को 2007 में शांति का नोबेल दिया गया लेकिन पैनल का अध्यक्ष होने के नाते आरके पचौरी ने इसे ग्रहण किया। पुरस्कार पर्यावरण में बदलाव के मानव निर्मित कारणों के प्रतिपादन और प्रसार के लिए दिया गया।
वेंकटरमन रामकृष्णन (1952): इन्हें 2009 में रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया। भारत में जन्मे पर अब अमेरिकी नागरिक रामचंद्रन को राइबोसोम की संरचना और कार्यप्रणाली पर किए महत्वपूर्ण अध्ययन के लिए यह पुरस्कार मिला।

उल्लेखनीय बिंदु
** चार नोबेल पुरस्कार विजेताओं को उनकी सरकारों ने पुरस्कार स्वीकार करने की अनुमति नहीं दी। जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने तीन जर्मनों रिचर्ड कुहन (रसायनशास्त्र, 1938), एडोल्फ बुटेनंट (रसायनशास्त्र, 1939) एवं गरहार्ड डोमाग्क (औषधि, 1939) और सोवियत यूनियन की सरकार ने बोरिस पास्टरनाक (साहित्य, 1958) को पुरस्कार नहीं लेने के लिए दबाव डाला।
** दो नोबेल पुरस्कार विजेताओं जीन-पॉल सारत्रे (साहित्य, 1964) और ली डक थो (शांति, 1973) ने पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया। सारत्रे ने किसी भी आधिकारिक सम्मान को लेने से इंकार किया तो ली डक थो ने वियतनाम में खराब स्थिति के कारण पुरस्कार से मना किया।
** राष्ट्रपिता गांधी जी को 1937, 1938, 1939 और 1948 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया। कहा जाता है कि वह 1948 में पुरस्कार के बेहद करीब थे लेकिन उनकी हत्या कर दी गई। इस पुरस्कार के लिए चूंकि मात्र जीवित व्यक्ति का ही चयन किया जाता है इसलिये उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिल सका। 1948 में शांति के नोबेल के लिए किसी को योग्य नहीं माना गया।
** छह विजेताओं ने एक से अधिक बार नोबेल पुरस्कार जीता, जिनमें द इंटरनेशनल कमिटी ऑफ द रेड क्रॉस सोसाइटी ने तीन बार नोबेल शांति पुरस्कार जीता।
** पहली महिला नोबेल पुरस्कार विजेता मेरी क्यूरी थी, जिन्हें 1903 में भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
** वर्ष 1940 और 1942 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण पुरस्कार नहीं दिए गए।
वर्ष 2010 के नोबेल पुरस्कार
शांतिः चीन के लिए लीओ शाओ बी को। बी को मानवाधिकार संरक्षण के लिए उनके लंबे संघर्ष पर दिया गया है। वे इन दिनों चीन की जेल में कैद हैं। वह उग्र टकराव के बजाए शांति ढंग से राजनीतिक बदलाव के पक्षधर हैं। इस पुरस्कार के लिए रिकॉर्ड 37 नामांकन आए, ली के नाम का तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने भी समर्थन किया था।
अर्थशास्त्रः अमेरिका के पीटर डायमण्ड, डेल मार्टनसन और ब्रिटेन के क्रिस्टोफर पिसारिड्स को संयुक्त रूप से। उन्हें यह पुरस्कार बेरोजगारी पर आर्थिक नीतियों के प्रभाव की व्याख्या करने वाले सिद्धांत के विकास के लिए दिया गया है। इनके द्वारा विकसित मॉडल से यह समझने में मदद मिलती है कि किस तरह के नियमन और आर्थिक नीतियों से बेरोजगारी, रोजगार और वेतन प्रभावित होते हैं।
साहित्यः स्पेनिश भाषा के प्रसिद्ध लेखक पेरू के मारिओ वर्गास लोसा को। लोसा के लेखन में संघर्ष और वंचित तबकों की दास्तां दिखती है। वर्ष 1982 में कोलंबियाई लेखक गेब्रियाल गार्सिया मार्खेज के बाद यह पुरस्कार पाने के वाले पहले दक्षिण अमेरिकी हैं। 1993 में स्पेन की नागरिकता स्वीकार करने वाले लोसो को स्पेनिश भाषा के प्रतिष्ठित सम्मान सर्वेन्तेस से भी सम्मानित किया जा चुका है।
चिकित्साः ब्रिटेन के डॉ. राबर्ट एडवर्ड्स को। एडवर्ड को इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के अविष्कार के लिए मिला है। 1950 के दशक में रॉबर्ट के किए प्रयासों के परिणामस्वरूप 25 जुलाई 1978 को विश्व के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ। लुई ब्राउन नामक इस बेबी के बाद से अब तक दुनियाभर में 40 लाख बच्चों को जन्म हो चुका है।
रसायनशास्त्रः अमेरिका के रिचर्ड हेक और जापानी अनुसंधानकर्ता ई इची निगेशी एवं अकीरा सुजुकी को संयुक्त रूप से। उन्होंने ऐसी रासायनिक पद्धति विकसित की है जिससे वैज्ञानिक कैंसर की दवाओं का परीक्षण करने और कंप्यूटर के पतले स्क्रीन बनाने में सक्षम हुए। यह पैलाडियन कैटेलाइज्ड क्रॉस कप्लिंग इन आर्गेनिक सिस्टम्स के नाम से जाना जाता है।
भौतिकीः रूस में जन्मे आंद्रे जीन और कोंस्तांतिन नोवोसेलोव को संयुक्त रूप से। पुरस्कार ग्रेफीन नामक नए पदार्थ की खोज के लिए मिला है जो इलेक्ट्रानिक्स क्रांति को नई दिशा दे सकते हैं। दोनों वैज्ञानिक ब्रिटेन में कार्यरत हैं। ग्रेफीन कार्बन की सूक्ष्म परत होती है जिसकी मोटाई एक अणु के बराबर होती है। व्यावहारिक तौर पर यह पारदर्शी और अच्छा सुचालक है। ग्रेफीन से इलेक्ट्रानिक सामान के लिए पारदर्शी टचस्क्रीन का निर्माण किया जा सकता है। प्रकाशीय पैनलों और सौर सेलों के उत्पादन में भी यह सहायक सिद्ध हो सकता है।

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