Sunday, December 26, 2010

भारत-रूस में अहम सैनिक परमाणु सहयोग समझौता

रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेमेव ने अपनी आधिकारिक भारत यात्रा 21 दिसम्बर को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात के साथ शुरू की। इस दौरान भारत और रूस के बीच 11 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें असैनिक परमाणु सहयोग पर अहम समझौता शामिल है। रूसी राष्ट्रपति रूस के आर्थोडॉक्स चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु पेट्रिआर्च एलेक्सी द्वितीय के निधन के कारण तीन दिन की यात्रा बीच में छोड़कर स्वदेश लौट गए। यात्रा की मुख्य बात यह रही कि मेदवेदेव ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार की सूरत में भारत को स्थाई सदस्य के रूप में मौका दिए जाने का समर्थन किया। उन्होंने कहा, अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार होता है, तो भारत स्थाई सदस्य बनने का हकदार है। दोनों देशों के बीच ये सहमति बनी है कि 2015 तक द्विपक्षीय व्यापार को 20 अरब डॉलर किया जाएगा।
ये हुए समझौते
परमाणु क्षेत्र में सहयोग के अलावा दोनों देशों के बीच तेल और गैस क्षेत्र, अंतरिक्ष, विज्ञान और तकनीक तथा फार्मा क्षेत्र में समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। अवैध अप्रवासियों को रोकने और हाइड्रोकार्बन सेक्टर में भी भारत और रूस के बीच सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर हुए। इसके अलावा 2015 तक द्विपक्षीय व्यापार को 20 अरब डॉलर तक बढ़ाने, इनमें चुनाव के क्षेत्र में मदद, आपातकाल से ल़डने में सहायता, द्विपक्षीय विज्ञान एवं तकनीक संस्थान खोलने, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सूचना आदान-प्रदान करने पर समझौते हुए हैं।
दोनों देशों के नेताओं के वक्तव्य
दिल्ली में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति ने कहा, भारत के साथ अफगानिस्तान मुद्दे पर भी चर्चा हुई है। कोई भी आतंकवादियों को अपने यहां आम नागरिक की तरह जगह नहीं दे सकता है और उन्हें सौपना ही चाहिए। मैं जानता हूं कि प्रत्यर्पण की प्रक्रिया जटिल होती है, इसके लिए कानूनी ढांचे की जरूरत है। ऎसा ढांचा तैयार होने के बाद आतंकवादियों को सौंप दिया जाना चाहिए, ताकि उन्हें सजा मिल सके। मेदवेदेव ने कहा कि रूस, पाकिस्तान से मांग करता है कि वह संयुक्त राज्य द्वारा आतंकी संगठनों पर लगाए गए पाबंदी को अमलीजामा पहनाए। इस मौके पर मनमोहन सिंह ने कहा कि रूस भारत का ऎसा दोस्त है, जिसने हर अच्छे-बुरे समय में भारत का साथ दिया है। उन्होंने कहा कि भारत के बाकी देशों से बढ़ते संबंधों के बावजूद रूस के साथ रिश्ता आगे बढ़ता रहेगा। भारतीय प्रधानमंत्री ने रूस-अमेरिका के बीच हुए निरस्त्रीकरण का स्वागत किया। दोनों देशों ने ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु संवर्धन कार्यक्रम का समर्थन किया।
यात्रा के निहितार्थ-
शीत युद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के करीबी रिश्ते रहे हैं और रूसी राष्ट्रपति चाहते हैं कि उनकी कंपनियां अन्य विदेशी कंपनियों से परमाणु और रक्षा सौदों में पिछ़ड न जाएं। भारत और रूस के बीच वर्ष 2009 में व्यापारिक लेन-देन साढ़े सात अरब डालर तक पहुंच गया था। वर्ष 2010 के पहले नौ महीनों में इस राशि में बीस प्रतिशत वृद्धि हुई और आशा की जा रही है वर्ष 2015 तक इसका स्तर बीस अरब डालर तक पहुंच जाएगा। दोनों देशों के बीच सबसे बड़ी संयुक्त परियोजना दक्षिणी भारत में एक परमाणु बिजलीघर का निर्माण और शाखालीन फील्ड से तेल और गैस का निकालना है जिसमें भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी शामिल है। रूस में बने हथियारों के लिए भारत पुराना बाज़ार रहा है लेकिन अब दोनों देशों के संबंध बदल रहे हैं. भारत अब सिर्फ़ रूस से हथियार नहीं खरीदना चाहता बल्कि उनकी तकनीक भी सीखना चाहता है। इसके अतिरिक्त एशिया में चीन के बढ़ते कद के मद्देनजर भी भारत अन्य शक्तिशाली देशों का समर्थन चाहता है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के साथ ही फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी और अब रूसी राष्ट्रपति के आगमन का लाभ उठाने की मंशा के पीछे यही निहितार्थ रहा है। इसके साथ ही विश्व में चीन के पश्चात भारत के आर्थिक विकास की दर सबसे ऊंची है और इस दर ने उसे अमेरिका और यूरोप की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए आकर्षण का केन्द्र बना दिया है।

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