Monday, September 24, 2012

बढ़ती जनसंख्या का संकट

दुनिया की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। भारत तो इससे सबसे ज्याद प्रभावित देशों की कतार में है। अनुमान है कि देश की जनसंख्या वर्ष 2016 तक 1.26 अरब तक बढ़ जाएगी। अनुमानित जनसंख्या का संकेत है कि 2050 तक भारत दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश होगा और चीन का स्थान दूसरा होगा। दुनिया के कुल क्षेत्रफल का 2.4% परन्तु विश्व की जनसंख्या का 18% धारण कर भारत का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव काफी बढ़ गया है। कई क्षेत्रों पर पानी की कमी, मिट्टी का कटाव और कमी, वनों की कटाई, वायु और जल प्रदूषण के कारण बुरा असर पड़ रहा है। भारत की जल आपूर्ति और स्वच्छता सम्बंधित मुद्दे पर्यावरण से संबंधित कई समस्याओं से जुड़े हैं। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और इसी के नतीजतन, आर्थिक विकास के कारण भारत में कई बड़ी पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। समस्या पर प्रकाश डालती अनिल दीक्षित की रिपोर्टः- सबसे तेज जनसंख्या वृद्धि दुनिया की जनसंख्या और शहरीकरण के रुझान पर हाल में जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे अधिक आबादी भारत में बढ़ रही है और सबसे अधिक शहरीकरण भी यहीं हो रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 तक भारत में एक करोड़ से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या छह हो जाएगी। ये शहर होंगे- दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद। इनमें दिल्ली तीन करोड़ 29 लाख के आंकड़े के साथ टोक्यो के बाद दुनिया का दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला शहर होगा। मुंबई दो करोड़ 66 लाख के साथ चौथा और कोलकाता एक करोड़ 87 लाख के साथ दुनिया का 12 वां सबसे बड़ा शहर होगा। बेंगलुरु की आबादी एक करोड़ 32 लाख, चेन्नई की एक करोड़ 28 लाख और हैदराबाद की एक करोड़ 16 लाख हो जाएगी। दुनिया में इनका स्थान 23 वां, 25 वां और 31 वां होगा। रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक दुनिया की शहरी आबादी में 72 प्रतिशत वृद्धि होगी तथा यह वर्तमान तीन अरब 60 करोड़ से बढ़कर छह अरब 30 करोड़ हो जाएगी। कई देशों में शहरी इलाकों में बच्चों का लिंगानुपात कम हुआ है और लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या में कमी आई है। वर्ष 2060 में अधिकतम जनसंख्या जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक विभाग की ओर से दुनिया के जनसांख्यिकी संबंधी अनुमान के आधार पर तैयार ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2060 में भारत की आबादी अपने सबसे अधिकतम स्तर पर पहुँच जाएगी। इसके बाद गिरावट का दौर शुरू हो जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार चीन की जनसंख्या वर्ष 2030 में अपने अधिकतम स्तर को छू लेगी. तब चीन की आबादी एक अरब 39 करोड़ होगी। फिर अफ्रीका के देशों की आबादी में तेज़ी से बढ़ोत्तरी का दौर शुरू होगा। रिपोर्ट के आंकड़े दुनिया भर में योजनाओं की तैयारी में इस्तेमाल किए जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़ वर्ष 2050 में दुनिया की आबादी नौ अरब 31 करोड़ तक पहुँच जाएगी। ये आंकड़ा वर्ष 2008 में जारी किए गए आंकड़े के मुक़ाबले क़रीब डेढ़ अरब ज़्यादा है। सदी के अंत तक विश्व की आबादी 10 अरब से भी अधिक होगी। आबादी दर में गिरावट दुनिया की आबादी को पांच अरब से छह अरब तक पहुंचने में 11 वर्षों का समय लगा था, लेकिन इसमें एक अरब और लोग जुड़ने में 13 वर्ष लग गए। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 31 अक्तूबर 2011 को दुनिया की आबादी ने सात अरब का आंकड़ा पार किया। इसकी एक बड़ी वजह दुनियाभर में प्रजनन स्तर और मृत्यु दर में गिरावट है। ये चलन विकसित देशों में ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया और लातिन अमेरिकी देशों में भी देखा गया है। अरब देशों को छोड़ दें तो एशिया प्रशान्त देशों में भी जनसंख्या में वृद्धि की दर क़रीब एक फीसदी है। लेकिन अफ़्रीकी देशों में ये चिंता का विषय है, वहां ये दर क़रीब ढाई फीसदी है। ये देश सबसे कम विकसित हैं और यहां आबादी सबसे तेज़ी से बढ़ रही है.संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के मुताबिक आने वाले 40 वर्षों में जो आबादी बढ़ेगी वो ज़्यादातर शहरों में ही रहेगी, लेकिन मौजूदा हालात में शहरों में इस बढ़ोत्तरी को समाने की क्षमता नहीं है। भारत में अधिक युवा वर्तमान में चीन, अफ़्रीका और विकसित देशों की तुलना में भारत में कहीं अधिक युवा लोग हैं इसके आधार पर समझा जाता है कि भारत में आबादी की औसत उम्र 25 साल है। देश की आबादी के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि देश में नवजात से 14 साल के बच्चों की आबादी 31.1 प्रतिशत, 15 से 64 वर्ष तक 63.6 और 65 से ऊपर के लोगों की तादात 5.3 प्रतिशत है। युवाओं की संख्या ही तेज की असली शक्ति कही जाती है। सिद्ध होता है कि आर्थिक नीतियों से विकास की तेज रफ्तार पकड़ चुके चीन की तुलना में हमारे पास भी अच्छी खासी युवा शक्ति है, फिर भी हम विकासशील देश का दर्जा हाल-फिलहाल विकसित देश में बदलने में सक्षम नहीं लग रहे। समाजशास्त्रियों के मुताबिक, युवा जनसंख्या को मानव संसाधन के रूप में ढालकर आर्थिक विकास का घटक बनाया जा सकता है। एक ताजा अध्ययन के मुताबिक भारत की श्रम शक्ति नई वैश्विक जरूरतों के मुताबिक तैयार हो जाए तो वह भविष्य में एक ऐसी पूंजी साबित होगी, जिसकी मांग दुनिया के हर देश में होगी। बुनियादी सुविधाएं दयनीय जनसंख्या बढ़ने के साथ ही जीविकोपार्जन के संसाधनों में लोगों की हिस्सेदारी बढ़ने लगी है। पर्यावरण पर दबाव बहुत बढ़ गया है। शहरों में जनस्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं दयनीय स्थिति में हैं। प्रतिदिन निकलने वाले कूड़े-करकट को हटाने और ठिकाने लगाने की व्यवस्था नहीं है। बिजली-पानी की भारी कमी, खराब सड़कें, जमीन और जल का गहरा प्रदूषण, बेकाबू बीमारियां, ट्रैफिक जाम, घटिया जल-मल निकास व्यवस्था, लूटपाट, भीड़-भाड़ और संकरी गलियां भारतीय शहरों का अभिन्न अंग बन गई हैं। जनसंख्या संबंधी भिन्नता, असंगठित शहरीकरण और बढ़ता सामाजिक-आर्थिक असंतुलन इस तरह के अपराधों को पनपने के लिए उर्वर भूमि उपलब्ध कराते हैं। कहा जा रहा है कि अपराध बढ़ रहे हैं, उन्हें अंजाम देने वाले एकदम नए चेहरे हैं। यानी चेन खींचने, अपहरण और हत्याओं को अंजाम देने वाले इन अपराधियों ने पहली बार इस दिशा में कदम बढ़ाया है। इन नए तरह के अपराधियों की पीढ़ी जो सामने आई है, उससे इस बात का खुलासा होता है कि अपराधों को अंजाम दे रहे लोग या तो वह हैं जो आधुनिक जीवन की जरुरतों के साथ ताल से ताल मिलाने की होड़ के बुरी तरह शिकार हैं या फिर ऐसे लोग हैं जो मौजूदा अंसतुलित विकास और संसाधनों के कुछ लोगों तक ही सीमित रहने का दंश झेल रहे हैं। अकेले राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां पिछले साल की अपेक्षा इस साल 15 जुलाई तक अपराधों में जो इजाफा हुआ, उसमें योगदान उन लोगों का ज्यादा था जो पुलिस फाइलों में अपराधी के रूप में अब तक दर्ज नहीं थे। सीनियर सिटीजन और अधिक असुरक्षित हुए हैं। आबादी क्षेत्रों का बेतरतीब विस्तार बढ़ती जनसंख्या की वजह से शहर और गांव-देहात के आबादी क्षेत्रों में बेतरतीब विस्तार हो रहा है। नेशनल कमेटी फॉर डेवलपमेंट इन रूरल एण्ड अर्बन एरियाज़ की रिपोर्ट के अनुसार, जिस विकास का बखान किया जा रहा है वह काफी हद तक संतुलित नहीं है। हालांकि एक वर्ग शहरीकरण को देश के लिए एक असाधारण वरदान का नाम देता है। इतिहास गवाह है कि जिन देशों में शहरों की प्रगति ज्यादा होती है , वहां आर्थिक अवसरों की उपलब्धता उतनी ही अधिक होती है। शहर किसी भी राष्ट्र के विकास के आधार स्तंभ होते हैं। जैसे-जैसे शहरों का विकास होता है, वैसे-वैसे नया बाजार तैयार होता है। प्रतिभाएं बढि़या शहरों में ही टिक सकती हैं। एक ऐसे समय में , जब दुनिया के सारे देश शहरीकरण से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने एवं अपने शहरों को वैश्विक लाभ के लिए सजाने-संवारने की योजनाएं बना रहे हैं , भारत के शहरों को भी संवारना आवश्यक हो गया है। भारत के लिए शहरीकरण की चुनौतियों के बीच विकास की भारी संभावनाएं हैं। हमें देश में नई वैश्विक जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में शहरों में विकास की मूलभूत संरचना, मानव संसाधन के बेहतर उपयोग , जीवन की सुविधाओं तथा सुरक्षा कसौटियों के लिए सुनियोजित प्रयास करने की जरूरत है। देश के ज्यादातर शहरों में नवीनीकरण और वर्तमान व्यवस्थाओं में बुनियादी बदलाव लाने की जरूरत है। हमें कुछ चमकते हुए शहरों को ही नियोजित शहर बनाने की बजाय छोटे-बड़े सभी शहरों के विकास पर ध्यान देना होगा। नई वैश्विक जरूरतों की पूर्ति करने वाले शहरों के विकास की दृष्टि से भारत के लिए यह एक अच्छा संयोग है कि अभी देश में ज्यादातर शहरी ढांचे का निर्माण बाकी है और शहरीकरण की चुनौतियों के लिए देश के पास शहरी मॉडल को परिवर्तित करने और बेहतर सोच के साथ शहरों के विकास का पर्याप्त समय अभी मौजूद है। सर्वाधिक मलिन बस्तियां भारत में जनसंख्या, खासकर शहरी जनसंख्या तेजी से बढ़ने के कारण आर्थिक-सामाजिक चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। दुनिया की कुल आबादी में भारत की हिस्सेदारी 17.5 फीसदी हो गई है जबकि पृथ्वी के कुल धरातल का मात्र 2.4 फीसदी हिस्सा ही भारत के पास है। अभी 121 करोड़ आबादी के साथ भारत 134 करोड़ की सर्वाधिक जनसंख्या वाले चीन के काफी करीब पहुंच गया है। देश के शहरों में तेजी से बढ़ती जनसंख्या का संसाधनों पर जबरदस्त दबाव पड़ रहा है। वस्तुत: दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में भारतीय शहर कहीं ज्यादा चिंताजनक स्थिति में हैं। इसका सबसे सीधा असर आवास समस्या के रूप में दिखाई पड़ रहा है। शहरों में मकानों की कमी के कारण मलिन बस्तियां वर्ष-प्रतिवर्ष तेजी से बढ़ती जा रही हैं। दुनिया की सबसे अधिक मलिन बस्तियां भारत में हैं और ये शहरी भारत के लगभग चार फीसदी हिस्से पर बनी हुई हैं। इन बस्तियों में लोग कदम-कदम पर ढेर सारी कठिनाइयों का सामना करने और नारकीय जीवन जीने के लिए विवश हैं। यही नहीं, यह बस्तियां अपराध जैसी बुराइयों को बढ़ावा भी दे रही हैं।

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