Monday, September 24, 2012

पेट्रोल

क्या होता है पेट्रोल पेट्रोल या गैसोलीन एक पेट्रोलियम से प्राप्त तरल-मिश्रण है। इसे प्राथमिकता से अन्तर्दहन इंजन में बतौर ईंधन और एसीटोन की तरह एक शक्तिशाली घुलनशील द्रव्य की तरह प्रयोग किया जाता है। इसमें कई एलिफैटिक हाइड्रोकार्बन होते हैं, जिसके संग आइसो-आक्टेन या एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे टॉलुईन और बेंजीन भी मिलाए जाते हैं, जिससे इसकी ऑक्टेन क्षमता (ऊर्जा) बढ़ जाये। इसका वाष्पदहन तापमान शून्य से 62 डिग्री (सेल्सियस) कम होता है, यानि सामान्य तापमान पर इसका वाष्प दहनशील होता है। इसी वजह से इसे अत्यंत दहनशील पदार्थों की श्रेणी में रखा जाता है। कई ठण्डे देशों में इसको प्राथमिकता से प्रयोग में लाया जाता है क्योंकि बहुत कम तापमान में इसकी ज्वलनशीलता बाक़ी ईंधनों के मुकाबले अधिक होती है। सामान्य तापमान पर इसका घनत्व 740 किलो प्रति घनमीटर होता है जो पानी (1000) से हल्का है। अर्थशास्त्रियों और वकीलों से अटी पड़ी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पेट्रोल को अमीरों का ईंधन मान बैठी है। हकीकत यह है कि देश के साठ फीसदी से ज्यादा दुपहिया-तिपहिया वाहनों की बिक्री छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में होती है। महानगरों में निम्न मध्यवर्ग ही पेट्रोल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। जापान की होंडा मोटर्स दुनियाभर में पेट्रोल कारों के लिए जानी जाती है मगर भारत में डीजल कारें भी बनाती है क्योंकि हमारी सरकार ने लक्जरी डीजल कारों को खैरात बांटने की शपथ ले रखी है। एक और विडंबना देखिए। भारत के 90 फीसदी तेल कारोबार पर सरकारी कंपनियों का नियंत्रण है और सरकार की मानें तो ये कंपनियां जनता को सस्ता तेल बेचने के कारण भारी घाटे में हैं। दूसरी ओर, फॉच्र्यून पत्रिका के मुताबिक दुनिया की आला 500 कंपनियों में भारत की तीनों सरकारी तेल कंपनियां- इंडियन ऑयल (98), भारत पेट्रोलियम (271) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (335)- शामिल हैं। तेल और गैस उत्खनन से जुड़ी दूसरी सरकारी कंपनी ओएनजीसी भी फॉच्र्यून 500 में 360वीं रैंक पर है। आखिर यह कैसे संभव है कि सरकार घाटे का दावा कर रही है लेकिन तेल कंपनियां की बैलेंसशीट खासी दुरुस्त है। दरअसल भारत में रोजाना 34 लाख बैरल ( एक बैरल में 159 लीटर) तेल की खपत होती है और इसमें से 27 लाख बैरल तेल आयात किया जाता है। आयात किए गए कच्चे तेल को साफ करने के लिए रिफाइनरी में भेज दिया जाता है। तेल विपणन कंपनियों के कच्चा तेल खरीदने के समय और रिफाइनरी से ग्राहकों को मिलने वाले तेल के बीच की अवधि में तेल की कीमतें ऊपर-नीचे होती हैं। यहीं असली पेंच आता है। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 110 डॉलर प्रति बैरल है और अंडररिकवरी हमेशा मौजूदा कीमतों के आधार पर तय की जाती है। विडंबना देखिए, सरकार 120 डॉलर प्रति बैरल के पुराने भाव से अंडररिकवरी की गणना करके भारी-भरकम आंकड़ों से जनता को छलती है। तेल विपणन कंपनियों का कथित घाटा भी आंकड़ों की हेराफेरी है। सकल रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) इसका सबूत है। कच्चे व शोधित तेल की कीमत के बीच के फर्क को रिफाइनिंग मार्जिन कहा जाता है और भारत की तीनों सरकारी तेल विपणन कंपनियों का जीआरएम दुनिया में सबसे ज्यादा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में तेल विपणन कंपनियों का जीआरएम चार डॉलर से सात डॉलर के बीच रहा है। चीन भी भारत की तरह तेल का बड़ा आयातक देश है जबकि अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक चीन का रिफाइनिंग मार्जिन प्रति बैरल शून्य से 2.73 डॉलर नीचे है। यूरोप में तेल भारत से महंगा है लेकिन वहां भी जीआरएम महज 0.8 सेंट प्रति बैरल है। दुनिया में खनिज तेल के सबसे बड़े उपभोक्ता अमेरिका में रिफाइनिंग मार्जिन 0.9 सेंट प्रति बैरल है। अमेरिका और यूरोप में तेल की कीमतें पूरी तरह विनियंत्रित हैं और बाजार भाव के आधार पर तय की जाती हैं। अंडररिकवरी की पोल खोलने वाला दूसरा सबूत शेयर पर मिलने वाला प्रतिफल यानी रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) है। आरओई के जरिए शेयरहोल्डरों को मिलने वाले मुनाफे का पता चलता है। भारतीय रिफाइनरियों का औसत आरओई 13 फीसदी है, जो ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) के 18 फीसदी से कम है। अगर हकीकत में अंडररिकवरी होती तो मार्जिन नकारात्मक होता और आरओई का वजूद ही नहीं होता। जाहिर है, भारत में तेल विपणन मुनाफे का सौदा है और भारतीय ग्राहक दुनिया में सबसे ऊंची कीमतों पर तेल खरीदते हैं। महंगे तेल की एक और वजह है। हमारे देश में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने तेल विपणन को खजाना भरने का जरिया बना लिया है। पेट्रोल पर तो करों का बोझ इतना है कि ग्राहक से इसकी दोगुनी कीमत वसूली जाती है। ताजा बढ़ोतरी के बाद दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 73.14 रुपए है और जबकि तेल विपणन कंपनियों के सारे खर्चों को जोड़कर पेट्रोल की प्रति लीटर लागत 30 रुपए के आस-पास ठहरती है। केंद्र सरकार जहां कस्टम ड्यूटी के रूप में साढ़े सात फीसदी लेती है वहीं एडिशनल कस्टम ड्यूटी के मद में दो रुपए प्रति लीटर, काउंटरवेलिंग ड्यूटी के रूप में साढ़े छह रुपए प्रति लीटर, स्पेशल एडिशनल ड्यूटी के मद में छह रुपए प्रति लीटर, सेनवेट के मद में 6.35 रुपए प्रति लीटर, एडिशनल एक्साइज ड्यूटी दो रुपए प्रति लीटर और स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी के मद में छह रुपए प्रति लीटर लेती है। राज्य सरकारें भी वैट, सरचार्ज, सेस और इंट्री टैक्स के मार्फत तेल में तड़का लगाती हैं। दिल्ली में पेट्रोल पर 20 फीसदी वैट है जबकि मध्य प्रदेश में 28.75 फीसदी, राजस्थान में 28 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 22 फीसदी है। मध्य प्रदेश सरकार एक फीसदी इंट्री टैक्स लेती है और राजस्थान में वैट के अलावा 50 पैसे प्रति लीटर सेस लिया जाता है। ----------------------------- भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश हैं जहां सरकार की भ्रामक नीतियों के कारण विमान में इस्तेमाल होने वाला एयर टरबाइन फ्यूल यानी एटीएफ, पेट्रोल से सस्ता है। दिल्ली में पेट्रोल और एटीएफ की कीमतों में तीन रुपए का फर्क है और नागपुर जैसे शहरों में तो एटीएफ, पेट्रोल से 15 रुपए तक सस्ता है। एटीएफ और पेट्रोल की कीमतों के बीच यह अंतर काउंटरवेलिंग शुल्क और मूल सेनवैट शुल्क की अलग-अलग दरों के कारण है। सरकार सब्सिडी खत्म करने का भी तर्क देती है। सब्सिडी को अर्थशास्त्र गरीब मानव संसाधन में किया गया निवेश मानता है लेकिन हमारी सरकार इस सब्सिडी को रोककर तेल कंपनियों का खजाना भरना चाहती है। ----------------------------- आज जब कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत अगस्त 2008 की कीमत से भी कम है, फिर किस तर्क पर सरकार ने इसके मूल्य में साढ़े सात रुपए की बढ़ोतरी कर दी, यह समझ से परे है। दैनिक भास्कर डॉट कॉम के कैलकुलेशन के अनुसार, फिलहाल पेट्रोल का बेसिक प्राइस 42 रुपए निकलता है जिसके बाद केंद्र और राज्य सरकारें उसमें अपने 35-40 रुपए टैक्स और ड्यूटीज जोड़ती हैं, जिसके कारण दाम 82 रुपए तक हो जाता है। आज कच्‍चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से मिल रहा है। एक डॉलर 56 रुपए के बराबर है तो एक बैरल का दाम हुआ 5600 रुपए हुआ। यह अगस्त 2008 की तुलना में 6 प्रतिशत सस्ता है। उस समय यह 5900 रुपए प्रति बैरल मिल रहा था। इसके बावजूद सरकार ने तेल कंपनियों को 7.5 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी करने से रोका नहीं। एक बैरल में लगभग 150 लीटर कच्चा तेल आता है। इस एक बैरल तेल को रिफाइन कर पेट्रोल में बदलने का कुल खर्च 672 रुपए निकलता है। इस तरह से पेट्रोल का दाम 42 रुपए प्रति लीटर से भी कम हुआ। (5600+672/150= 41.81)। इसका दाम बढ़कर 77-81 रुपए हो जाता है क्योंकि इसमें बेसिक एक्साइज ड्यूटीज सहित अन्य ड्यूटीज और सेस के साथ स्टेट सेल्स टैक्स भी जोड़ा जाता है। इससे 42 रुपए में 35-40 रुपए और जुड़कर इसका दाम उतना हो जाता है। इस तरह से केंद्र और राज्य दोनों मिलकर आम जनता की भलाई के नाम पर पैसा उगाहने के लिए उन्हीं के जेब पर बोझ बढ़ाते हैं। दुनिया को रफ्तार देने के लिए कच्च तेल एक बहुत बड़ा जरिया बन चुका है। इस जरिए पर दुनिया के चंद देशों की हुकूमत ही चलती है। इन देशों के तेल देने से मना करते ही करीब आधी दुनिया ठप हो जाएगी। हम बात कर रहे हैं ऐसे देशों की, जो तेल के बेताज बादशाह हैं। पूरी दुनिया तेल को लेकर इन्हीं देशों पर पूरी तरह से निर्भर है, फिर चाहे वो भारत हो या अमेरिका। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि तेल पर हुकूमत करने वाले किन देशों में कच्चे तेल का कितना भंडार है? देखें- वेनुज़वेला के पास 296,500,000,000 बिलियन बैरल का आइल रिज़र्व है। वेनुज़वेला यूनाइटेड स्टेजिस स्टेट को सबसे ज्यादा आइल सप्लाई करता है। वेनुज़वेला यूनाइटिड स्टेट को एक दिन में 1.4 मिलियन बैरल तेल निर्यात करता है। इरान के पास 150,600,000,000 बिलियन बैरल तेल का रिज़र्व है। इरान का प्रोडक्शन 1074 में सबसे अधिक था जब वह एक दिन में 60 लाख बैरल तेल एक दिन में उत्पादित करता था। कनाडा के पास 175,200,000,000 बिलियन का रिज़र्व है। कनाडा का 99 प्रतिशत तेल यूनाइटिड स्टेट्स को निर्यात किया जाता है। कनाडा ही वह देश है जो यूनाइटिड स्टेट को सबसे अधिक तेल निर्यात करता है। साउदी अरेबिया का आइल रिजर्व 264,600,000,000 बिलियन बैरल का है। विश्व के पूरे आइल रिज़र्व का पांचवा हिस्सा सिर्फ साउदी अरेबिया के पास है। साउदी अरेबिया के पास गैस और आइल की 100 बड़ी गैस फील्ड हैं। साउदी अरब के कुल तेल का आधा उत्पादन तो सिर्फ 8 बड़े फील्ड में ही हो जाता है। इन फील्ड में दुनिया की सबसे बड़ी फील्ड घ्वार फील्ड भी शामिल है इराक के पास 143,500,000,000 का आइल रिज़र्व है। इराक चल रहे लगातार युद्धों के कारण 2001 के बाद से ऑफिशियल आंकड़े प्राप्त नहीं हुए हैं। इराक में मॉर्डनाइज़ेशन और इंवेस्टमेंट की जरूरत है। ----------------------------- पेट्रोल का दाम बढ़ाने के जो तर्क दिए जाते रहे हैं, उसकी हकीकत भी समझिए। पब्लिक सेक्टर के तेल कंपनियों की हानि की पूर्ति करना- सच यह है कि सरकार ज्‍यादा रकम टैक्‍स के रूप में रख लेती है और तेल कंपनियां अपनी रिफाइनिंग कैपेसिटी बढ़ाने के लिए नया निवेश नहीं कर पाती हैं। तेल के नए रिसोर्स की खोज भी वह नहीं कर पातीं। अन्य इंवेस्टर्स भी असुरक्षित महसूस कर अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं। इन सबके चलते तेल के स्रोतों का धनी भारत पीछे रह जाता है और इनके मुकाबले सिंगापुर और इंडोनेशिया जैसे देश अपनी रिफाइनरी कैपेसिटी में आगे निकल जाते हैं। रुपए का तेजी से अवमूल्यन पिछले महीनों में रुपए का दस प्रतिशत अवमूल्यन करने से 51 रुपए का डॉलर 56 रुपए का हो गया। वहीं तेल भी तो 120 डॉलर प्रति बैरल से घटकर 100 डॉलर हो गया। इसलिए, रुपए के अवमूल्यन को कारण बनाकर पेट्रोल का दाम बढ़ाने वाली बात सही नहीं लगती। सब्सिडी का रोना इस बार पेट्रोल का दाम बढ़ाने से पहले भी सरकार 42 रुपए का पेट्रोल 70 रुपए में बेच रही थी। कल के दाम बढ़ोतरी के बाद तो बेसिक पेट्रोल प्राइस पर सरकार और 83 प्रतिशत टैक्स ले रही है। फिर कैसी सब्सिडी? अब इससे ज्यादा और कितना बोझ सरकार आम आदमी पर डालेगी। सरकार तो डीजल तक पर सब्सिडी नहीं दे रही है। सब्सि़डी के नाम पर 44-46 रुपए में एक लीटर डीजल मिल रहा है जबकि रिफाइनिंग से लेकर सारे कॉस्ट मिलाकर इसका दाम 42 रुपए प्रति लीटर आता है। ----------------------------- दुनिया में एक देश ऐसा भी है जहां पेट्रोल पानी से भी सस्ता मिलता है। दुनिया में सबसे सस्ता पेट्रोल वेनेजुएला के काराकस में मिलता है। काराकस में 1 लीटर पेट्रोल की कीमत 3 रुपये से भी कम है। यहां लोगों को हर लीटर पेट्रोल के लिए 2.49 पैसे चुकाने होते हैं। यहां की 90 फीसदी से ज्यादा की अर्थव्यवस्था केवल तेल पर ही टिकी हुई है। इस देश में पेट्रोल नदियों में पानी की तरह हर जगह बहता है। हालांकि यहां के लोगों को पानी के लिए पेट्रोल से भी ज्यादा कीमत चुकानी होती है। दिलचस्प है कि 1980 में काराकस सरकार ने पेट्रोल की कीमते बढ़ाने के प्रयास किये थे। इस प्रयास के चलते यहां भारी दंगा मच गया था, जिसमें सैंकड़ों लोगों की मौत भी हो गई थी। दुनिया में दूसरे नंबर पर सबसे सस्ता तेल रियाद में मिलता है। यहां पर लोगों को प्रति लीटर तेल के लिए 6.70 रुपये चुकाने होते हैं। यहां भी काराकस की तरह पानी के लिए पेट्रोल से ज्यादा पैसा चुकाना होता है। ----------------------------- अमेरिकी सीनेट की सशस्त्र सेना समिति के अध्यक्ष कार्ल लेविन ने कहा है विवादास्पद परमाणु कार्यक्रमों को ईरान पर हवाई हमले किए जाने से पहले विश्व समुदाय को ईरान के तेल निर्यातों की समुद्री घेराबंदी करनी चाहिए। लेविस ने एक टीवी चैनल के लिए रिकार्ड किए गए कार्यक्रम में कहा 'मुझे लगता है कि संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्थाओं के अनुकूल ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को सीमित करने का उस पर दबाव बढ़ाने के लिए यह कदम जरूरी है।' इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्नी हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि ईरान पर दबाव बढ़ाने के लिए उस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के कड़ाई से पालन के लिए उत्तर कोरिया जैसे देशों से लगातार बातचीत हो रही है और इस दिशा में अच्छी प्रगति हुई है।

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